हरवाहा
हरवाहा
आज मै लिखने चला हूँ लघु कथा,
मूल जिसका एक दीन किसान है
मर चुकी है जिसकी कामना ,
पर समुन्नत रह गया एक शान है
देख के आये हुए आतिथ्य को
टाल देता सामने का थाल है
शांत कर लेता क्षुथा जल घूँट से
पेट भरता एक चने का गाल है
हरवाहा
आज मै लिखने चला हूँ लघु कथा,
मूल जिसका एक दीन किसान है
मर चुकी है जिसकी कामना ,
पर समुन्नत रह गया एक शान है
देख के आये हुए आतिथ्य को
टाल देता सामने का थाल है
शांत कर लेता क्षुथा जल घूँट से
पेट भरता एक चने का गाल है
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