गागा तेरी माँग भरा है, हंस हंस कर श्रृंगार किया है
रे निष्ठुर मन तू क्या जाने , कितना तुझको प्यार किया है
नेह निशा के मदिरालय से, विष पीकर विश्वास चल गया
बिभा बावरी के वियोग में ,अनुपम अमित प्रभात ढाल गया
कभी दिवा आता है हंस हंस रो रो रजनी जाती है
हँसी रुदन के द्वैत संधि में अमर आत्मा खो जाती है
पल पल युग बीत रहा है साँस साँस बन गयी पपीहा
मन कि एक मुराद न पूजी मन मंदिर के निठुर मसीहा
गिर गिर पड़ते नैन सितारे जब तूने अभिसार किया है
रे निष्ठुर मन तू क्या जाने , कितना तुझको प्यार किया है
घर कि याद सताने आयी या मन की मन रही दीवाली
आंख बचाकर रन संगर में या कोई आयी मतवाली
रे निष्ठुर मन तू क्या जाने , कितना तुझको प्यार किया है
नेह निशा के मदिरालय से, विष पीकर विश्वास चल गया
बिभा बावरी के वियोग में ,अनुपम अमित प्रभात ढाल गया
कभी दिवा आता है हंस हंस रो रो रजनी जाती है
हँसी रुदन के द्वैत संधि में अमर आत्मा खो जाती है
पल पल युग बीत रहा है साँस साँस बन गयी पपीहा
मन कि एक मुराद न पूजी मन मंदिर के निठुर मसीहा
गिर गिर पड़ते नैन सितारे जब तूने अभिसार किया है
रे निष्ठुर मन तू क्या जाने , कितना तुझको प्यार किया है
घर कि याद सताने आयी या मन की मन रही दीवाली
आंख बचाकर रन संगर में या कोई आयी मतवाली
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