गजल Gajal

इश्क क्या मुसीबत है तुम समझ न पाओगे
अश्क के समुंदर में हर ख़ुशी डुबाओगे
 इश्क क्या मुसीबत है तुम समझ न पाओगे


इनको तुम समझतो हो महफिले सिकंदर है
आबरू के प्याले में क्या जहर मिलाओगे
 इश्क क्या मुसीबत है तुम समझ न पाओगे

ये जमी के जुगनू है असमा के तारे नहीं
एक झलक दिखा देंगे फिर देख न पाओगे
इश्क क्या मुसीबत है तुम समझ न पाओगे 

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