रूप देख थकती आँखे थी
ऐसी सुधर सलोनी
ब्रम्हा से वरदान माँग
गोया प्रकटी अन होनी
बाल सुनहले थे गुलाल के
रंग से फाग रचाए
बारह मास बसंत रीझकर
जिस पर धोखा खाये
भीग जलद में बिजली के
संग रहना नहीं सुहाया
चंचलता आ रोम रोम में
मानो रास रसाया
ऐसी सुधर सलोनी
ब्रम्हा से वरदान माँग
गोया प्रकटी अन होनी
बाल सुनहले थे गुलाल के
रंग से फाग रचाए
बारह मास बसंत रीझकर
जिस पर धोखा खाये
भीग जलद में बिजली के
संग रहना नहीं सुहाया
चंचलता आ रोम रोम में
मानो रास रसाया
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